गुरुवार, 12 नवंबर 2009

My Home Work





इसमे कुछ नया नही है जो तुम्हे लगता है, इंतजार तो उस पल का है जो शायद कभी आए या कभी ना बदले, पर ये सोचना तो सही है की कुछ तो अजीब है इस दुनिया में जो इस तरह से सफलता के पीछे की असफलता को बाया कर रहा है । किसी देश का चाँद पर पहुचना जरुर देश की प्रगति को बाया करता है पर उसी देश में आज भी एसे लोग भी है हो दो वक्त की रोटी के लिए तरसते है दो वक्त की रोटी के लिए संघष करते है आज भारत में एसे लाखो बच्चे है जिनके पैदा होते ही उनकी संधर्ष भरी जिन्दगी शुरू हो जाती हे और मरने के बाद ही ख़त्म होती है . वो नहीं जानते की बचपन क्या होता है माँ का प्यार काया होता हे ख़ुशी क्या होती है उनका बचपन काले अँधेरे की तरह होता है .
देश में बच्चे आज भी पेट के लिए रोज मरते हे उनका बचपन खिलोने , टेडी बीअर या खेलने में नही गुजरता वो हमारे बच्चे की तरह नहीं जीते ।


भारत की एक बच्ची 9 साल की गुडिया का HOME WORK -

१ भीख मांगना और २० रुपये कलेक्ट करना मानपुर गेट क्रासिंग से,

२ बर्तन धोना और साफ़ करना मिस्टर शर्मा के घर का ,

३ घर पर आटा सानना और खाना बनाना .

ये सिर्फ गुडिया की कहानी नहीं है एसे लाखो लोग हे जो इस कहानी का हिस्सा हे ये भीख मागते हे, पेट के लिए सडको पर धूमते हे और लोगो का गुस्सा और मार सहते है सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए . क्या होगा इनका भविष्य में क्या ये कुछ बन पायेगे या इनकी जिन्दगी की कभी सुबह नहीं होगी .
सरकारी योजनाये और सरकारी मदद इन की पहुच से कोसो दूर है , इनका बचपन को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है की इनका आने वाला भविष्य कितना काला होगा , सरकारी योजनाये इन तक न कभी पहुची है और न कभी पहुचेगी क्योकि उचाई की और देखने वालो को कभी नीचे देखना पसंद नही । जब तक किसी देश की जड़ मजबूत नही होगी जो देश कभी विकसित नही हो पायेगा । हम ये अच्छी तरह से जानते हे की सरकार जो इन बच्चो के लिए करोडो रुपये खर्च करती हे वो पैसा कहा जाता है उस पेसे से शायद भ्रष्ट अधिकारी अपने बच्चो और परिवार के लिए बंगले, कार एशो आराम की चीजे खरीदते है और जिनके लिए ये पैसा होता हे उनके लिए दो वक्त की रोटी भी नशीब नहीं होती है .
इन बच्चो को जरुरत हे तो हमारे सहारे की हमारे प्यार की बिना हमारी मदद के इन बच्चो का कुछ नहीं होगा जब हमारा हमारे देश का भविष्य सुरक्षित नहीं तो चाँद पर जाने का क्या फायदा .

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